जालंधर/चंडीगढ़ (नवनीत कौर) : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लुधियाना के एक गांव की 13 साल की लड़की जो बलात्कार की शिकार पीड़िता है। यह कहते हुए 21 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी कि अगर बच्चा दुनिया में आया तो मां और उसे सारी उम्र सामाजिक कलंक और कारावास झेलना होगा।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे निर्णय लेने कठिन होते है, लेकिन जीवन केवल जन्म लेने में सक्षम होना नहीं, बल्कि सामान के साथ जीने में सक्षम होना है। न्यायमूर्ति नामित कुमार ने कहा कि यह दीवार पर लिखी एक इबारत है, जो मां और बच्चे की पीड़ा को बढ़ाती है। अदालत ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि पीड़िता अब भी नाबालिग है और अपने परिवार पर निर्भर है। नाबालिग का परिवार भी बच्चे को अपनाने और उसकी परविरश से इंकार कर चुका है। ऐसे में बच्चे का इस दुनिया में आना उसके लिए बड़ा खतरा होगा। समाज न बच्चे को अपनाएगा और न ही भविष्य बेहतर होगा बल्कि वह उम्र बहर तानो को सहने पर मजबूर रहेगा इसलिए बेहतर यही है कि वह जन्म ना ले।
अदालत ने पी. जी. आई. चंडीगढ़ को पीड़ित की जांच कर रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें डाक्टरी बोर्ड ने भी गर्भपात करवाने का उचित माना है। जस्टिस नामित कुमार ने कहा कि अदालत के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि संबंधित मैडीकल बोर्ड द्वारा दी गई राय के तहत कोर्ट गर्भपात की इजाजत देता है। अदालत ने पी. जी. आई. चंडीगढ़ को गर्भपात संबंधी सभी उचित और आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। तर्क सुनने के बाद अदालत ने एक्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल की बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को समाप्त करने के मामले पर विचार करते हुए कहा कि अपील की उम्र और यौन शोषण के कारण उसे जो आघात पहुंचा है। जिस पीड़ा से वह गुजर रही है और सबसे बढ़कर न्यायालय द्वारा गठित मैडीकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए हम गर्भावस्था को समाप्त करना उचित समझते हैं,जिसकी आगया देना बेहतर है।

















