पंजाब में पराली जलाने का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दिनों में 107 नए पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए हैं। इससे अब तक इस सीजन में कुल 415 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। हालांकि यह संख्या पिछले सालों के मुकाबले कम है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो सकता है।
2024 के इसी समय तक पंजाब में 1,510 पराली जलाने के केस दर्ज किए गए थे, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 1,764 तक पहुंच गया था। यानी इस बार लगभग 75% की गिरावट देखने को मिली है। राज्य सरकार इसे अपनी सख्त नीतियों और किसानों में बढ़ती जागरूकता का परिणाम बता रही है।
पंजाब के कई जिलों में, खासतौर पर तरनतारण, अमृतसर, फिरोजपुर और मोगा में यह समस्या अधिक देखने को मिल रही है। कृषि विभाग ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है — जिनमें FIR दर्ज करना, सब्सिडी रोकना और भूमि रिकॉर्ड पर लाल निशान (Red Entry) जैसी सज़ाएं शामिल हैं।
सरकार ने इस साल किसानों को पराली न जलाने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं भी शुरू की हैं। इनमें सुपर सीडर, हैप्पी सीडर और मलबा प्रबंधन मशीनों पर सब्सिडी दी जा रही है ताकि किसान पराली को खेत में ही मिला सकें। इसके अलावा, कई स्वयंसेवी संस्थाएं किसानों को जैविक खाद बनाने और मृदा की सेहत सुधारने की दिशा में भी प्रशिक्षित कर रही हैं।
हालांकि, पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी के बावजूद हवा की गुणवत्ता (AQI) में सुधार नहीं हो पाया है। दिवाली के बाद पंजाब का औसत AQI 231 दर्ज किया गया, जो स्वास्थ्य मानकों के अनुसार “खतरनाक” श्रेणी में आता है। इसका कारण सिर्फ पराली नहीं बल्कि आतिशबाज़ी, वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक धुआं भी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार और किसान मिलकर दीर्घकालिक योजना पर काम करें — जैसे कि फसल विविधिकरण, बायो-एनर्जी प्लांट्स और कृषि अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन — तो आने वाले वर्षों में पराली संकट को स्थायी रूप से खत्म किया जा सकता है।
पंजाब सरकार का दावा है कि इस बार “Zero Stubble Burning” का लक्ष्य रखा गया है, और इसके लिए लगातार निगरानी टीमें खेत-खेत जा रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सख्ती लंबी चलेगी या नवंबर के अंत तक वही पुरानी स्थिति फिर लौटेगी?

















